सामान्य हिन्दी - वर्ण एवं ध्वनि
वर्ण एवं ध्वनि
वर्ण - वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते ।
जैसे — अ, इ, ख्, ग्, इत्यादि । ये सभी वर्ण हैं, क्योंकि इनके खंड नहीं किये जा सकते । उदाहरण द्वारा मूल ध्वनियों को यहाँ स्पष्ट किया जा सकता है । ‘राम’ और ‘गया’ में चार-चार मूल ध्वनियिँ हैं, जिनके खंड नहीं किये जा सकते —
र् + आ + म् + अ = राम, ग् + अ + य् + आ = गया ।
इन्हीं अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं । हर वर्ण की अपनी लिपि होती है । लिपि को वर्ण संकेत भी कहते हैं । वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं । हिन्दी में कुल 48 वर्ण हैं, जो इस प्रकार हैं —
स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ — ग्यारह
व्यंजन – क, ख, ग, घ, ङ (कवर्ग)
च, छ, ज, झ, ञ (चवर्ग)
ट, ठ, ड, ढ, ण (टवर्ग) स्पर्श व्यंजन — पच्चीस (कवर्ग से पवर्ग तक)
त, थ, द, ध, न (तवर्ग)
प, फ, ब, भ, म (पवर्ग)
य, र, ल, व (अंतःस्थ) — चार
श, ष, स, ह (ऊष्ण) — चार
ड़, ढ़ — दो
(ं) अनुस्वार, (ः) विसर्ग — अयोगवाह — दो
वर्णों के भेद – वर्णों के दो प्रकार हैं — (1) स्वर वर्ण और (2) व्यंजन वर्ण।
स्वर वर्ण (Vowel) – ‘स्वर’ उन वर्णों को कहते हैं, जिनका उच्चारण किसी दूसरे वर्ण की सहायता के बिना होता है । इसके उच्चारण में कंठ, तालु का उपयोग होता है, जीभ, होठ का नहीं । ये दो प्रकार के होते हैं —
ह्रस्व स्वरों – अ, इ, उ, ऋ — के उच्चारणों में कम समय लगता है ।
दीर्घ स्वरों – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ — के उच्चारणों में दुगुना समय लगता है ।
व्यंजन वर्ण (Consonant) – ‘व्यंजन’ उन वर्णों कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है ।
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वर्ण - वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते ।
जैसे — अ, इ, ख्, ग्, इत्यादि । ये सभी वर्ण हैं, क्योंकि इनके खंड नहीं किये जा सकते । उदाहरण द्वारा मूल ध्वनियों को यहाँ स्पष्ट किया जा सकता है । ‘राम’ और ‘गया’ में चार-चार मूल ध्वनियिँ हैं, जिनके खंड नहीं किये जा सकते —
र् + आ + म् + अ = राम, ग् + अ + य् + आ = गया ।
इन्हीं अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं । हर वर्ण की अपनी लिपि होती है । लिपि को वर्ण संकेत भी कहते हैं । वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं । हिन्दी में कुल 48 वर्ण हैं, जो इस प्रकार हैं —
स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ — ग्यारह
व्यंजन – क, ख, ग, घ, ङ (कवर्ग)
च, छ, ज, झ, ञ (चवर्ग)
ट, ठ, ड, ढ, ण (टवर्ग) स्पर्श व्यंजन — पच्चीस (कवर्ग से पवर्ग तक)
त, थ, द, ध, न (तवर्ग)
प, फ, ब, भ, म (पवर्ग)
य, र, ल, व (अंतःस्थ) — चार
श, ष, स, ह (ऊष्ण) — चार
ड़, ढ़ — दो
(ं) अनुस्वार, (ः) विसर्ग — अयोगवाह — दो
वर्णों के भेद – वर्णों के दो प्रकार हैं — (1) स्वर वर्ण और (2) व्यंजन वर्ण।
स्वर वर्ण (Vowel) – ‘स्वर’ उन वर्णों को कहते हैं, जिनका उच्चारण किसी दूसरे वर्ण की सहायता के बिना होता है । इसके उच्चारण में कंठ, तालु का उपयोग होता है, जीभ, होठ का नहीं । ये दो प्रकार के होते हैं —
- मूल स्वर – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ, ऋ ।
- संयुक्त स्वर – ऐ (अ + ए) और औ (अ + ओ)
ह्रस्व स्वरों – अ, इ, उ, ऋ — के उच्चारणों में कम समय लगता है ।
दीर्घ स्वरों – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ — के उच्चारणों में दुगुना समय लगता है ।
व्यंजन वर्ण (Consonant) – ‘व्यंजन’ उन वर्णों कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है ।
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स्थान | वर्ण | नाम |
कंठ | अ आ क् ख् ग् घ् ङ | कंठ्य वर्ण |
तालु | इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् श् | तालव्य वर्ण |
मूर्द्धा | ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् र् ष् | मूर्द्धन्य वर्ण |
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